दुर्लभ जीव जंतुओं को चंबल सेंक्चुरी का साफ सुथरा पर्यावरण रास आ रहा है। वन विभाग भी इसे ईको टूरिज्म के रूप में विकसित कर रहा है। हर साल देश-विदेश से यहां पर्यटक भी आते हैं।

न धूल…न धुआं, सुकून देती स्वच्छ हवा में गूंजता दुर्लभ चिड़ियों का मधुर कलरव। रहस्य रोमांच से भरी बीहड़ की वादियों में कुलांचे मारते काले, चितकबरे हिरन। नदी में खेलते घड़ियाल, मगरमच्छ, कछुए और गोते लगाती डॉल्फिन। ये तस्वीर हैं कभी डकैतों के लिए कुख्यात रहे चंबल के खूबसूरत आंगन की।

चंबल नदी में रेड लिस्ट में शामिल कछुओं की आठ प्रजातियां साल, धोढ़, धमोका, पचेड़ा, कटहवा, सुंदरी, बटागुर, चित्रा इंडिका संरक्षित हो रही हैं। नदी में 1859 घड़ियाल, 710 मगरमच्छ, 74 डॉल्फिन पर्यटकों को यहां खींच रही हैं।

235 प्रजाति के परिंदों में लुप्त होने की कगार पर पहुंची ब्लैक बिंग्ड स्टिल्ट, रुडी शैल्डक, ब्लैक नेक्ड स्टार्क, इंडियन स्कीमर, रिवर टर्न, ब्लैक बैलबीड टर्न, बार हैडेड गूज, ब्लैक आईविश जैसी वे दुर्लभ पक्षी भी शामिल हैं। जिन्होंने चंबल को अपनी वंशवृद्धि के लिए नया घर बनाया है।

चंबल सफारी जरार के डायरेक्टर आरपी सिंह कहते हैं कि यहां आने वाले अमेरिका, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस आदि मुल्कों के पर्यटक चंबल को धरती का स्वर्ग बोलते हैं।