
कछुओं के 7000 नन्हें मेहमानों के चंबल की गोद में पहुंचने के साथ ही हैचिंग शुरू हो गई है। नेस्टिंग सीजन में इटावा और बाह रेंज से लाए गए अंडों से निकले कछुओं के बच्चों को कछुआ संरक्षण केंद्र से चंबल नदी में छोड़ा गया। इस दौरान टीएसए के पवन पारीक, शिशुभान सिंह भदौरिया, संतराम आदि मौजूद रहे।
चंबल नदी में दुनिया भर से लुप्त हुई कछुओं की सात प्रजातियां साल, धोंढ, धमोका, पचहेडा, कटहवा, चित्रा इण्डिका, बटागुर का संरक्षण हो रहा है। कछुआ संरक्षण केंद्र गढायता में टर्टल सर्वाइवल एलायंस (टीएसए) तथा बाह इटावा रेंज में वन विभाग की टीम हैचिंग शुरू होने के साथ ही सक्रिय हो गई है।
नेपाल, बांग्लादेश, वर्मा जैसे देशों में शिकार के चलते कछुओं की इन प्रजातियों पर संकट मंडरा रहा है। इन्हें आईयूसीएन की रेड लिस्ट में संकट ग्रस्त प्रजाति की सूची में रखा गया है। बाह के रेंजर आरके सिंह राठौड़ ने बताया कि कछुओं के अंडों से निकलने वाले बच्चे चंबल नदी में पहुंचने लगे है।
मार्च में कछुओं ने चंबल नदी के किनारे अंडे दिए थे। जिन्हें चिह्नित कर वन विभाग ने जंगली जानवरों से बचाने के लिए जाली लगा दी थी। जीपीएस से लोकेशन को ट्रेस किया गया था। मई के आखिर में नेस्टों से सरसराहट की आवाज आने पर जाली हटा दी गई थी।