महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में कम्युनिटी मेडिसिन विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अमित मोहन वार्ष्णेय का कहना है कि बायोलॉजिकल वारफेयर या बॉयोलॉजिकल टेररिज्म का खतरा चीन की और से बहुत बढ़ा हुआ है। इस तरह के हमले से सीधे सेना को बड़ा नुकसान पहुंचाया जा सकता है। बायोलॉजिकल हमला सैनिकों के श्वासतंत्र को सर्वाधिक ध्वस्त देता है। सैनिकों के संक्रमित होने पर उन्हें उनके स्टाफ और बाद में सरहद से लौटने पर छावनी और संपर्क में आने वाली पूरी सिविल आबादी को भी नुकसान होता है।

डॉ. वार्ष्णेय के अनुसार बायोलॉजिकल अटैक के लिए तीन कैटेगरी में जीवाणु, विषाणुओं को विभाजित किया जाता है। कैटेगरी ए में एंथ्रेक्स, क्लास्ट्रीडियम बाटूलाइनम, स्मॉल पॉक्स वहीं, कैटेगरी बी में रिकीटीशियल जनित बीमारी वाले ब्रूसैलोसिस, क्लास्ट्रीडियम परफिरेंजेंस, क्लेमाइडिया बिबरियो कॉलेरी हैं और कैटेगरी सी में जेनिटिकली इंजीनियर्ड नीफा और हंता जैसे वायरस शामिल किये गए हैं। कुछ रेडियो एक्टिव पदार्थों से भी बॉयोलॉजिकल वेपन तैयार होते हैं। स्मॉल पॉक्स से जैविक हथियार तैयार करने की आशंका अधिक बढ़ जाती है। भारत में यह पूरी तरह खत्म हो चुका है।