दुनियाभर में कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच अलग-अलग देशों में कई रिसर्च हो रही हैं। भारतीय वैज्ञानिक समेत दुनियाभर के शोधकर्ता और विशेषज्ञ कोरोना के लक्षणों, इसकी संरचना, प्रभाव, इलाज, दवा, वैक्सीन आदि को लेकर शोधरत हैं। शुरुआत से ही कई शोधों के आधार पर यह बात बताई जा चुकी है कि कमजोर इम्यूनिटी वालों को कोरोना का ज्यादा खतरा रहता है। इसके अलावा बुजुर्गों या पहले से गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोगों को संक्रमण का खतरा ज्यादा रहता है। लेकिन क्या कोरोना संक्रमण का ब्लड ग्रुप से भी गहरा संबंध है? बीते मार्च में इसको लेकर चीन के हुबेई प्रांत के झोंगनान अस्पताल में एक रिसर्च स्टडी की गई थी। अब एक बार फिर जर्मनी की कील यूनिवर्सिटी ने इस संबंध में अध्ययन किया है, जिसके परिणाम पूर्व में हुई स्टडी से मिलते हैं।
जर्मनी की कील यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अध्ययन में बताया है कि किस ब्लड ग्रुप के लोगों को कोरोना संक्रमण का ज्यादा खतरा है और किस ग्रुप के लोगों को इसका कम खतरा है। उन्होंने डीएनए के एक खास हिस्से को कोरोना संक्रमण से जोड़ते हुए अध्ययन किया है। बताया है कि ज्यादा जोखिम वाले ब्लड ग्रुप के मरीजों को सांस लेने में तकलीफ बढ़ सकती है और वेंटिलेटर की भी जरूरत पड़ सकती है।
शोधकर्ताओं का दावा
कील यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का दावा है कि ए ब्लड ग्रुप (Blood Group A type) वाले लोगों को कोरोना संक्रमण का ज्यादा खतरा रहता है। ऐसे लोगों में संक्रमण का स्तर गंभीर हो सकता है और उन्हें वेंटिलेटर तक की जरूरत पड़ सकती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, अन्य ब्लड ग्रुप वालों की अपेक्षा ए ब्लड ग्रुप वालों को संक्रमित होने का खतरा छह फीसदी तक ज्यादा है।
ए ब्लड गुप वालों को खतरा
शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया है कि ए ब्लड ग्रुप वाले कोरोना पीड़ितों में डीएनए का एक खास हिस्सा ऐसा है, जो ज्यादा जोखिम का कारक हो सकता है। रिसर्च के दौरान इसकी पुष्टि हुई है। इससे पहले चीन के वुहान में हुई रिसर्च स्टडी में भी पता चला था कि जिन लोगों का ब्लड ग्रुप ए है, उन्हें कोरोना के संक्रमण का ज्यादा खतरा है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि ए ब्लड ग्रुप वाले कोरोना मरीजों में 50 फीसदी तक संभावना है कि उन्हें सांस लेने में ज्यादा तकलीफ हो सकती है। उन्हें ऑक्सीजन की ज्यादा जरूरत पड़ सकती है या फिर उन्हें वेंटिलेटर पर भी रखना पड़ सकता है। ब्लड ग्रुप एक ऐसा फैक्टर है, जो कि बुजुर्गों के प्रति युवाओं को कम खतरा होने के समीकरण को प्रभावित करता है। बड़ी संख्या में युवा भी हो रहे संक्रमित
ब्लड ग्रुप और अन्य कई फैक्टर्स के चलते युवा और स्वस्थ लोग भी कोरोना से संक्रमित हो सकते हैं और उनकी मौत की संभावना भी हो सकती है। चीन में बुजुर्गों की संख्या ज्यादा रही, जबकि अमेरिका में कोरोना के 40 फीसदी मरीज युवा हैं। पिछले कुछ दिनों से कोरोना संक्रमितों में युवाओं की संख्या भी अच्छी खासी है।
रिसर्च स्टडी में क्या सामने आया?
शोधकर्ताओं ने सांस लेने में ज्यादा तकलीफ वाले इटली और स्पेन के कोरोना पीड़ितों के डीएनए सैंपल लिए। दोनों देशों के ऐसे 1610 मरीजों के जीनोम सिक्वेंस की जांच की गई। शोधकर्ताओं के मुताबिक, इनकी डीएनए रिपोर्ट में एक कॉमन पैटर्न दिखा जो जान का खतरा बढ़ाने के लिए जिम्मेदार कारक हो सकता है। सामान्य लक्षणों वाले 2205 मरीजों से इनकी डीएनए रिपोर्ट का मिलान करने पर पाया गया कि 1610 मरीजों में डीएनए के दो जीन उनकी नाजुक हालत के जिम्मेदार थे।
किस ब्लड ग्रुप वालों को कम खतरा?
जर्मनी के शोधकर्ताओं का कहना है कि ओ ब्लड ग्रुप(Blood Group O type) वालों में गंभीर संक्रमण का खतरा कम है। वुहान में मार्च में हुए रिसर्च में भी बताया गया था कि ए ब्लड ग्रुप की तुलना में ब्लड ग्रुप ‘ओ’ वाले लोगों को इसके संक्रमण का खतरा कम है। जर्मनी के शोधकर्ताओं के मुताबिक, ब्लड ग्रुप ए वालों में खतरे की वजह इम्यून सिस्टम भी हो सकती है, जो अधिक सक्रिय होने पर फेफड़ों में सूजन बढ़ाता है और दूसरे अंगों को भी इस तरह प्रभावित करता है कि अंग कोरोना से नहीं लड़ पाते।